वर्तमान पत्रकारिता पर लिखना अपराध है क्या?

वर्तमान पत्रकारिता पर लिखना अपराध है क्या? "अनिल मेहता "


अभी हाल ही में लखनऊ की वर्तमान पत्रकारिता पर वरिष्ठ पत्रकार खालिद रहमान का एक लेख आया था *" होशियार नज़ाकत और नफा़सत के शहर लखनऊ में सक्रिय हैं चन्द तथाकथित पत्रकार "* खालिद रहमान ने कोई गलत बात नहीं लिखी थी लखनऊ में चल रही वर्तमान पत्रकारिता के विषय में अपनी चिंता जाहिर की थी ! लखनऊ की पत्रकारिता में अपना अप्रतिम योगदान देने वाले  स्व०यशपाल कपूर,पद्म श्री स्व० आचार्य वचनेश त्रिपाठी,स्व०राजनाथ सिंह " सूर्य" को भला कौन भूल सकता है! हिन्दी साहित्य के हस्ताक्षर अमृत लाल नागर की भी कार्य स्थली लखनऊ रही ! ऐसे शहर की पत्रकारिता के प्रति खालिद रहमान ऐसे पत्रकार की चिंता स्वाभाविक ही है! यह बात निश्चित रूप से माननी होगी कि उ०प्र०की राजधानी लखनऊ में पत्रकारिता का स्तर गिरा है! मेरा सामना लखनऊ में ऐसे-ऐसे पत्रकारों से होता है जिनको शुद्ध हिन्दी भी लिखना नहीं आता ! जब वे बताते हैं कि मैं पत्रकार हूँ तो मुझे अपने पत्रकार होने पर शर्म आती है! इस बात से किसी को आपत्ति नहीं हो सकती है कि झूठी,ब्लैकमेल करने वाली या समाज में वैमनस्य बढ़ाने वाली खबरों की छूट किसी भी पत्रकार को नहीं दी जा सकती ! परन्तु अफसोस की बात है ऐसा नहीं हो रहा है! आज की तारीख़ में तथाकथित पत्रकारों की जैसे बाढ़ आ गयी है! जैसे- जैसे पत्रकारों की संख्या बढ़ी है! उसी अनुपात में पत्रकारिता का स्तर भी गिरा है! अगर आप मान्यता प्राप्त पत्रकारों की सूची देखें तो लगभग 1200 मान्यता प्राप्त पत्रकार हैं! पहले यह सूची 150 या 200 की हुआ करती थी!इस तरह के मान्यता प्राप्त पत्रकारों में पेट्रोल पम्प चलाने वाले और ठेकेदारी, बिल्डर भी शामिल हैं! इस तरह के पत्रकारों से निष्पक्ष पत्रकारिता की आशा करना बेकार है! खालिद रहमान की चिंता स्वाभाविक है! परन्तु अपने लेख में खालिद रहमान ने इशारों-इशारों में कुछ पत्रकारों को इंगित किया है! बेहतर होता खालिद रहमान वर्तमान में पत्रकारिता के गिरते स्तर पर ही ध्यान केंद्रित रखते! खालिद रहमान ने हालांकि पत्रकारिता के गिरते स्तर पर ही अपनी चिंता व्यक्त की है परन्तु कुछ पत्रकार इस लेख को अपने से जोड़कर देख रहे हैं!


 


अनिल मेहता,प्रमुख सम्पादक