`तू अगर इंसान है तो देवता मैं भी नहीं। यूँ समझ ले दोस्त तेरे से जुदा मैं भी नहीं॥


तू जिए जा इस जहां में दूसरों के वास्ते।
रह सकेगा तू सदा कब औ' सदा मैं भी नहीं॥


चल रही है मेरी कश्ती अपनी मंज़िल की तरफ।
रब तेरा है आसरा तो नाख़ुदा मैं भी नहीं।।

आदमी को देखकर के डर रहा है आदमी।
इस जहाँ में इस रिवायत से बचा मैं भी नहीं।।


*"राज"* की बातों पे गर विश्वास है खुलकर कहो।
इस ख़ुशी की बात पर तो रोकता मैं भी नहीं।।


*कवि कृष्ण कुमार सैनी"राज दौसा,राजस्थान*