लखनऊ में हुई हिंसा का जिम्मेदार कौन?
नवाबों का शहर लखनऊ जो अपनी तहजीब,अदब और मृदु वाणी के लिए विश्व भर में विख्यात है। जिसे गंगा - जमुनी तहजीब का जीता जाता उदाहरण माना जाता है। वही लखनऊ शहर अब नागरीकता संशोधन अधिनियम के विरोध के नाम पर जिस तरह से उपद्रवियों ने मीडिया की बसों को आग से जलाया, पत्थर बाजी की तथा शांत और खुशनुमा माहौल को भययुक्त कर दिया। वह लखनऊ जैसे शांत और तहजीब वाले शहर के लिए एक बदनुमा दाग है। राजनीति और धर्म का सहारा लेने वाली राजनीतिक पार्टियों को जिन्हें देश की फिक्र से ज्यादा अपनी कुर्शी की चिंता सताती है। जो सत्ता की हवस में इतना अंधे हो गए कि वह देश के युवाओं पर ही अत्याचार कर रहे हैं। और क्या कहा जाए राजनेताओं के बहकावे में आये उन लोगों को जो बिना सोंचे समझे हिंसा पर उतर आये। लेकिन लखनऊ में हुई हिंसा जिसमे पक्ष/विपक्ष के राजनेताओं के अलावां भी कुछ लोग जिम्मेदार हैं जिसमें मुख्य रूप लखनऊ की प्रशासनिक व्यवस्था संभालने वाले अधिकारी चाहे वह लखनऊ के जिलाधिकारी महोदय हों,पुलिस अधीक्षक महोदय हों या फिर लखनऊ जनपद के ख़ुफ़िया विभाग हो जो पूरी तरह से अपना काम करने में असफल रहे। ये सवाल अब बहुत बड़ा इसलिए बन गया क्योंकि प्रशासन की इस विफलता से देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था को खतरा हो सकता है। क्योंकि उपद्रवी इकट्ठा होते रहे ट्रकों पत्थर जमा होते रहे,उपद्रव की साजिशें होती रही और लखनऊ जैसे महानगर का इंटेलिजेंस विभाग अपनी आँखें और कान बंद करके सोता रहा। क्या कहा जाए उन निष्क्रिय विभागों को जो अपना काम सही तरीके से नही कर पाए और परिणाम यह हुआ कि नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू होने के विरोध में जो प्रदर्शन हो रहा था वह उग्र हो गया और इसकी आग में पूरा शहर जल उठा। इसके लिए वो उपद्रवी व जनता को बहकावे में लाने वाले लोग तो दोषी हैं ही,लेकिन प्रशासन व्यवस्था भी कम दोषी नही है। इसलिए सभी भारतवासियों से गुजारिश है कि वह किसी के बहकावें में न आएं,सतर्क रहें! सुरक्षित रहें! जिन्दाबाद!
सूरज कुमार(सम्पादक) दैनिक पब्लिक पॉवर समाचार पत्र