सिसकती साँसो के साथ दम तोड़ता लोकतंत्र " अनिल मेहता "
ऐसा लग रहा है जैसे भारत में लोकतंत्र अन्तिम साँसे ले रहा है! सत्ता की भूख चरम सीमा पर है! सत्ता के लिये हिन्दू मुस्लिमों के मन में ज़हर पैदा किया जा रहा है! युनिवर्सिटियाँ सुलग रही हैं! छात्र पढ़ाई छोड़ कर आन्दोलन कर रहे हैं ! व्यापार ठप पड़ गया है! राजा महाराओं की तरह जनता के पैसे पर ऐश करते मंत्री,सांसद,विधायक?क्या यही लोकतंत्र है? भारत के करोड़ों युवा बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं! भारी मात्रा में लोग भूखे मर रहे हैं! पर चंद मुट्ठी भर लोग जनता के पैसे पर ऐश कर रहे हैं! क्या यही लोकतंत्र है?लोकतंत्र के नाम पर नेतागीरी करने वाले लोकतंत्र का गला घोंट रहे हैं! जनता के मन से लोकतंत्र का मोह भंग हो रहा है! लोकतंत्र के नाम पर गन्दी राजनीति हो रही है! जन सेवा के नाम पर निजी स्वार्थ की राजनीति हो रही है! जन सेवा के नाम पर राजनीतिक नेताओं का एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोपण यह रह गया है आज का लोकतंत्र! गन्दी राजनीति के चलते आज भारत वासी मुस्लिमों को भारत का दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया गया है! अभी हाल ही में नागरिक संशोधन बिल के नाम पर देश भर मे उपद्रव हुये करोड़ों रूपये की सरकारी सम्पत्ति का नुकसान हुआ! क्यों नहीं भारत के मुस्लिमों को बिल पास होने के पहले विश्वास में लिया गया! कोई नेता दलितों का मसीहा होने का नाटक करता है कोई अन्य जाति विशेष का सत्यता यह है कि जातियाँ अपनी जगह पर रह गयीं, जातियों के मसीहा बनने वाले आगे बढ़ गये! लोकतंत्र के पहरूओं का नाटक देखते- देखते जनता आज़िज़ आ चुकी है! और ऐसा प्रतीत होता लोकतंत्र अब समाप्ति की ओर है! लोकतंत्र का आनन्द चंद मुट्ठी भर लोगों को उठाते देख कर जनता अब लोकतंत्र की सत्यता को समझ चुकी है! यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत में सिसकती साँसो के साथ लोकतंत्र दम तोड़ रहा है!